मौन
रात बीत चली
पुनः सुबह की ओरख्वाब छुट गया
आज भी
वहीं कहीं
सिमट गया
ठहर गया
मुझ में कहीं
अधखिली पंखुड़ी सा
सिकुड़ता
आतुर हुआ
कुछ कहने को
पर कह न सका
पिछली रात की तरह
मोम पिघल गया
यहीं कहीं
मेरे सिरहाने
अब मौन पसरा हुआ है
मैं सिहर कर
बस तांकता रह गया
सुबह को
मनोज शर्मा
टिप्पणियाँ