प्रभु

 कोई है अंतर्मन में

नित् सांकल बजाता है
कभी अनबोली प्रीति सी
मुझमें छोड़ जाता है
गेरुआ वस्त्र,संग वीणा
प्रभु-रास रचाता है
कब होगा मेरा वो
नित् नवगीत सुनाता है
प्रातः,सांध्य,रात्रि
वो मुझमें आ जाता है
कोई है संग मेरे
जो नित् अपना बनाता है
तर्पण हो,दर्पण हो
कर्पण हो,अर्पण हो
कभी बाल सखा
कभी रासरंग हो
तुम्हीं सर्वस्व हो
तुम्हीं कर्तव्य हो

मनोज शर्मा

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