कर्मपथ

 तुम कर्म पथ बढ़ो

मैं संग हूं
कालांतर से
पूर्ववत
ना समझो
हर ओर
अंधकार नहीं
वरन्
भूलवश भटके हो यहीं कहीं
पर स्मरण करो
हर ओर उजाला है
मौन हूं मैं
अशांत नहीं हूं
अभी समय नहीं
अभिव्यक्ति का
यदाकदा
यथार्थ से अवगत रहो
पुनः कर्मपथ पर लौट चलो
सार नहीं है जीवन
यों व्यर्थ
अटहास न करो
गहन संवेदनाओं से सजा
सधा होता है
आलौकिक क्षण
कण कण में होता है
अद्मुत जग
तुम कदम कदम पर
धर्म पथ पर चलो
वैभव चरणबद्ध
संग होगा
तेरे

मनोज शर्मा

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