पथ

 ठहर ज़रा

वक्त तो रुक जाने दे
तुम इंद्रधनुष नहीं
जो पल भर में लौट जाओगे
शीतल कर मेरी आंखे
बिन बरसे
तुम अब स्थिर हो
पंक की भांति
मुझसे लिपटे हो
लौट आओ तुम
मुझमें
बिखरी बूद
ठिठककर अब अश्क बनी
देह कंपित ,स्थिर हुई
प्रथम किरण ज्यों ही पड़ी
मौन अभिव्यंजित नहीं हुआ
आज भी
मैं अकेला नहीं
तुम संग हो पूर्ववत
बीते समय की भांति
पथ में सुन्दरतम्

मनोज शर्मा

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