नैराश्य (लघुकथा)

 रैड़ सिगनल से दौड़ती हुई गाड़ी एक पल को रुकी वहां कोई गाड़ी के टायर के नीचे आ चुका था।एक आकृति ने गाड़ी के बायें शीशे से बाहर पलटकर देखा एक भिखारी मृत्यु भय से चिल्ला रहा था और अंतिम चीख के साथ वहीं मर गया गाड़ी में बैठी आकृति ने ड्राइवर को गाड़ी तेज भगाने का निर्देश दिया कुछ ही मिनटों में सड़क साफ थी जहां दो पल पूर्व ज़ोर शोर था वहीं अब हंसी ठट्ठा चल पड़ा यह वही भिखारी था जिसे कई वर्षो से यहां देखा जाता था। एक गरीब निर्धन अपंग परिवार एक मरियल से लड़के को गोद में लिए मृतक भिखारी की औरत सिसक रही थी रात बीती जो था सब चला गया था अब कोई नहीं जो उन्हें पाल सके लिहाज़ा अगली ही सुबह वो उसी सिगनल पर भीख मांग रही थी दुःख और नैराश्य को ओढ़े आंखों से बरसात हो रही थी पर वो भिखारी खोमचे रिक्शे वाले जन जो कल तक भिखारी के साथ होते थे आज उन्हें ताना मारने में कोई गुरेज न था एक कहता अरे भीखू की आग भी नहीं बुझी और ये यहां बैठी है दूसरा बोलता अरे निर्लज्ज है साली हया बेच खायी इस पापिन ने तीसरा भी बोलता अरे इन सालों का कभी पेट नहीं भरता पता नहीं कितना खाते हैं पर भिखारिन आंखों को जमीं में टिकाएं सुबकती रही अश्रु बहाती रही उसकी सिसकियां सुनने वाला कोई नहीं।कल से ही पेट में एक टुकड़ा नहीं गया था पेट कमर सब एक होने लगी थी जो थोड़ा बहुत था भिखारी के कफन आदि में स्वाहा हो गये थे अब आज की भीख से ही उसका शाम का चूल्हा जल सकता है।उसके दुःख दर्द को समझने वाला कोई नहीं मानो दुःख उसे नहीं हो मृत्यु का शौक वेदना भी तानो के शोर में दफन होती जा ही थी लगता यों कि  दुःख केवल अमीरों पैसेवालो की ही सम्पत्ति हो अमीरो का क्या है वो महीने पन्द्रह दिन दुःख जमा भी कर ले तो उनकी ज़िन्दगी का क्या बिगड़ता है पर गरीब को तो मानो दुःख का भी अधिकार नहीं उनको पेट भरना है तो बस रोते रहो मरते रहो तेज धूप में भी उसके विषाद में कोई कमी नहीं ।दो एक दया के सिक्के सामने बिखरे पड़े हैं अब यही सरमाया हो पर अभी लंबी दोपहर और फिर घनी बिलखती रात होगी क्या यही जीवन है इन लोगों का अक्सर किस्मत को सब रोते हैं पर वास्तव में किस्मत के तो ये मारे है जिनके जीवन में कोई सुख नहीं बस आंसुओं से भरी मुफलिसी है ताने है। लगता है इनका तो भगवान भी नहीं  जिधर देखो उधर तंज जैसे मृत्यु के साथ साथ भूख भी मृत हो गयी हो एक रोज़ में ही चेहरा निकल आया है आंखे धंस चुकी है भूख भय निद्रा सुख शब्दमात्र हैं वैराग्य जाने कब से चिपका हो ...



मनोज शर्मा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पथभ्रष्ट

कोहरा