मेरा चश्मा

 मेरा चश्मा

रोज देखता
एक सुनहरा सपना
कभी इठलाता
कभी सहम जाता
नज़र बचाता
आंख उठाता
यौंही
बादलों में
घिर जाता
घने कोहरे सा
नित् आता
मेरा जीवन
उजियारा कर जाता
रंगीन सी
बदली बदली
जिन्दगी में
महकते पुष्प सा
रोज़ करीब आ जाता
दर्द छुपाता
उच्छवास
रफ़्त बदल
जीवन
सतत बनाता

मनोज शर्मा

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