प्रतिध्वनि

 दूर कहीं कोई बैठकर

मीठा राग सुनाता है
परम अभिव्यक्ति
बोल में
मृत्युभय नहीं
छलाबा नहीं
प्रेम है
पराकाष्ठता है
सम्पूर्ण जगत् का सा
परमानन्द है
आत्मसात् हुआ
तुझे पाकर
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष
तुम संग हो
जैसे आसमां में
दिवाकर है
कालांतर से
किंतु समक्ष होता नहीं
नित्य तुम सा
मुझ जैसा
दूर हो जाता है

मनोज शर्मा

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