जीवन

 जीवन क्या है

एक कहकहा
अंतहीन
उलझन भरा
रोज़ ठौर बदलता है
त्रासद या
मुस्कुराहट से भरा
शायद
मनोरम कभी कभी
किंतु
चिर परिचित
स्वयं में लौटता
कोई गहन
अनकहा सा

मनोज शर्मा

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