शब्द

 शब्द आते हैं

और ठहर जाते हैं
काव्य में
रोज़ मांझते हैं
मेरे अंतर्मन को
कभी स्थिर होकर
मौन रहता हूं मैं
पर बहुत कुछ कहता हूं
मूक शब्दों से
शब्द मात्र शब्द नहीं
मेरी जीवनगाथा है
कभी सहलाते हैं
मेरे मर्म को
कभी झंझोड़ते हैं
मेरे अंतर्द्वंद्व को
कभी मुस्काते हैं शब्द
कभी रो देते हैं आंखों से
कुछ नया कह जाते हैं
विशिष्ट शैली में
शब्द मैं हूं
चिर परिचित
सतत् यथार्थ

मनोज शर्मा

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