श्राद्ध

 कहते हैं ज़रुरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता हैं इसलिए क्योंकि गधा एक सीधा साधा प्राणी है जैसे उससे चाहे अपना काम निकाल सकते हैं पर इन श्राद्ध के दिनों में इंसान गधे को ही नहीं कुत्ते और काग को  बाप ही नहीं बल्कि दादा परदादा बनाने से नहीं चूकते क्योंकि वो आज यजमान हैं पितृ के से तुल्य हैं ।वो साल भर कुत्तों को देखते ही सोटा उठा लेता था और कउओ की आवाज़ बेहद कर्कश लगती थी पर आज उन्हें ढूंढने के लिए मारा मारा घूम रहा है बेचारे कुत्ते और काग भी समझ चुके हैं कि यहां से देह की दुर्गत ही होनी है सो वो भी उसे देखते ही नो दो ग्यारह हो जाते हैं हां उनके स्थान पर गधे को यों पूजा जाता तो बात भी होती पर वो बेचारा तो निरा गधा ही है तभी सर झुकाएं बिना आक्रोश के सब स्वीकार लेता है ।गली के दूसरे छोर से निकलतेभूरे कुत्ते को देखा भी पर उसकी आज कोई पूछ नहीं हो रही क्योंकि काले कुतेको ग्रास खिलाने से जो पून्य मिलता है वो भूरे कुत्ते को खिलाने में कहां मोहल्ले के कउए भी समझ चुके हैं कि यहां उनके लिए कुछ नहीं बचा सो वो भी दूर पार्कों में मस्त रहते हैं ।मैं सोचता हूं कि इन जैसे प्राणियों के लिए साल भर में इतने कम दिन क्यों बाकी दिन उन्हें भूख नहीं लगती क्या।बेचारा काला कुत्ता  सालभर पिटता है अपनों से भी बेगानों से भी पर इन दिनों उन्हें बिरले नेता की भांति खोजा जाता है तरह तरह के खीर पूरी पकवान आदि  खिलाए जाते है एक तरह से ऐसे गरीब जानवर की आदते बिगाड़ते हैं पर सदबुद्धि कोन दे किसी को जैसे पूर्वज इन दिनों सबको प्यारे लगते हैं वैसे ही ये सब जीव शायद यहां  उनसे भी ज्यादा पूज्यनीय।भूरा कुत्ता भी अपने इस रंग की देह पर निराश हो जाते क्योंकि वो सामने होकर भी किसी को नहीं दिखाई देते हां कउओ को कुछ अजीब सा जरुर लगता होगा उनका सुर तो आज कर्णप्रिय हो चला है तभी उन्हें सुनने को सब लालायित से दिखते हैं


मनोज शर्मा

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