ख़्वाब

 तुम तो एक ख्वाब थे

सरल से
सरस से
मुझ में स्थिर हो
तुमने
मोह लिया था
इक रोज़
जब
हर इक अदा से
कनखियों से
करपाश से
आलिंगन से
तुम
हमसफर
हो चले थे
फिर
कभी चहक कर
कभी महक कर
बरबस दिल मे
बसते थे
आज तुम
हर पल
संग हो
करीब हो
मेरे
हम सफर
बनकर
ख्वाब नहीं
वरन्
सत्य से भी
परे हो
तुम

मनोज शर्मा




 

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