सफेदी वाले

  (सफेदी वाले)

हाथ में रंग लिए
आंखे तेज दबी जबान
कान हर ओर किये
बढ़ी हुयी दाढ़ी
और फटे कमीज में
मुरझायी देह दिखती है
उनकी रोज़
बढ़ जाते हैं मैले गमछे
बने गलमुड़े छोड़ रहे गंध
कतार में बैठे है पसीने की       
तेज धूप में कोलतार से जल रहे
सपने बैठे हैं इंतजार में
गर्म सड़क पर
गाहक की आस में
शाम तक वो सफेदी वाले
बगल में दबी रंगीन रोटियां
महकती दूर तक बिन पानी के
दौड़ते हैं रोज़
आदत से वो सफेदी वाले।
मनोज शर्मा

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