भय (वीणा पत्रिका में प्रकाशित)

 वो दौड़ते कदमों से बढ़ता चला जा रहा था गर्मी की कलुषित उमस से वो पूरा भीगा था पेशानी पर पसीना थम तक नही रहा था वो बार बार दाये हांथ की अंगुलियों से पसीने को नीचे झटकता पर दो पल में ही फिर पेशानी पसीने से भर जाती जैसे तैसे दौड़ता वो अड़तीस नं0 बस में चढ़ गया उसने एक बार फिर पसीने को पीछे की ओर झटका पर ये क्या इस बार हाथों से छलकता पसीना सीधे साथ बैठी स्त्री पर जा पड़ा बदबूदार पसीने की बूंदे पड़ते ही स्त्री

तमतमा गयी और उसमें क्रोध चेतना जाग्रत हुई उसकी आंखे लाल थी होठ फड़फड़ा रहे थे पर फिर भी वो शांत रही किंतु मानुष बुरी तरह सहम गया और
खोफ से नज़र झुकाकर वहीं सिमट गया उसने शांत भाव से स्त्री से क्षमा याचना की पर स्त्री ने आंखे तरेरते हुए मुंह झटक दिया मानुष अपराधी की भांति बैठा रहा उसने बस से उतरते हुए पुनः बोला मैडम साॅरी मुझे अपनी ग़लती पर खेद है और वो बस से उतर गया दिन भर वो दुःखी रहा अगले दिन
उसने स्त्री से पुनः क्षमा याचना की और कहा कल की ग़लती के लिए मैं क्षमा चाहता हूं स्त्री बिना ध्यान दिये आगे बढ़ गयी वो चुपचाप स्त्री को देखता रह गया और उसे लगा कि वो अपराधी है शाम को दफ्तर के पश्चात स्त्री को पीछा करता हुआ वो उसके घर पहुंच गया और फिर बोला मैडम मुझसे सब अनजाने में हुआ स्त्री ने उसे घर में देखते ही बुरी तरह डांट दिया तुम यहां तक कैसे पहुंचे ? यहां से दफा हो जाओ वरना अभी पुलिस को फोन लगाती हूं स्त्री की आंखो में जाने रक्त उतर आया हो जाते हो कि नहींऽऽऽऽऽऽ।मानुष और भी ज़्यादा घबरा गया उसका हृदय तेजी से धड़कने लगा उसकी देह कांप रही थी वो घर पर आकर सोफे पर लेट गया।महीने तक नित्य जाने वाली बस में मानुष को न पाकर उस स्त्री ने कंडकटर से पूछ ही लिया मानुष कहां है आजकल दिखाई नहीं दे रहा क्या बस बदल ली है उसने?कंडक्टर ने दुःखी मन से उत्तर दिया मैडम वो तो दस रोज़ पहले ही दिल के दौरे से मर गया जाने किस चिंता में घुला जा रहा था वो आप जब अपनी कजिन की मैरिज में गये थे उन्ही दिनों वो परेशान था दो एक बार आपके बारे में पूछा था कि आप क्यों नहीं आ रही पर था वेचारा शरीफ आदमी भगवान उसकी आत्मा को शांति दे....

मनोज शर्मा

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