संदेश

कोहरा

  कोहरा सुबह की नर्म धूप में हल्का गंधला कोहरा है जिसमें अक्सर चलते-चलते तुम्हें देखता हूं।हल्की स्निग्ध ठंडी हवा में तुम्हारी आंखों के कोर भीग जाते हैं तुम्हारे दोनों हाथ मेंहदी रंग के मखमली शाल में सिमटे हैं और एक सूखी-सी मुस्कुराहट के साथ तुम एक आकृति को सामने देखते हो और बिना किसी प्रतिक्रिया के आगे बढ़ जाते हो।हरी घास पर चलते हुए तुम एक मर्तबा पलटकर देखते हो वो आकृति अभी भी तुम्हें देख रही है बिना हिले ढुले जड़वत!   अक्सर राह में लोग मिल जाते हैं कोई अच्छा होता है कोई बहुत अच्छा और कोई बुरा भी होता है।कहीं भी मानसिक संतोष मिल छाए तो यकीनन ज़िन्दगी सुकुन भरी हो जाए।अब इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में यह ज़रूरी तो नहीं कि किसी से मिला जाए और यदि किसी से मिल भी लिया जाए तो उससे मिलना लाभकारी होगा।ये तो स्वयं पर निर्भर करता है कि किससे बात की जाए मित्रता की जाए या प्रेम किया जाए पर ऐसा कतही ज़रूरी नहीं कि हर मिलने वाले से मित्रता की जाए यह ख़ास आकर्षण किसी ख़ास में ही होता है जिससे बात करने को मन करे घंटों उसकी राह देखते रहें फिर यह ज़रूरी भी तो नहीं कि प्रेम के लिए किसी से मिला जाए या

सुख

  एक उम्र होती है,जब हर आदमी एक औसत सुख के दायरे में रहना सीख लेता है..उसके परे देखने की फुरसत उसके पास नहीं होती,यानि उस क्षण तक महसूस जब तक खुद उसके दायरे में ..आपने अक्सर  देखा होगा कि जिसे हम सुख कहते हैं वह एक ख़ास लमहे की चीज़ है۔۔

बेबस-कहानी सरिता में प्रकाशित

 https://www.sarita.in/family-stories/hindi-story-bebas-part-1

मौन

  रात बीत चली पुनः सुबह की ओर ख्वाब छुट गया आज भी वहीं कहीं सिमट गया ठहर गया मुझ में कहीं अधखिली पंखुड़ी सा सिकुड़ता आतुर हुआ कुछ कहने को पर कह न सका पिछली रात की तरह मोम पिघल गया यहीं कहीं मेरे सिरहाने अब मौन पसरा हुआ है मैं सिहर कर बस तांकता रह गया सुबह को मनोज शर्मा

पथभ्रष्ट

  रंग तरंग खूब घुमड़ता मेघ सा सजल सघन पंथहीन अविचल सा भ्रमरथ हृदय सकल सार सा विस्तार वो अंतहीन विकल विरल नित्य ठहर इधर उधर घना कौंधता गतिहीन अब मनोरथ मनोज शर्मा

मां

  मैंने कई मर्तवा देखा था तुम्हें आर्द्र नयनों से भीगते सिसकते कसकते चहकते महकते स्वयं को मिटते सिमटते बरबस चहकते हुए मर्म समेटे मुस्कुराहट बिखेरते गहन अंधकार को तराशते पुनः नवतरण लौटते अभिन्न असहज अक्षुण्ण सहृदय से नव कर्म में आशीष लिए नित्य तुम संग हो मनोज शर्मा